Wednesday, 6 July 2011

Sudarshan fakir

आदमी आदमी को क्या देगा 
जो भी देगा वही ख़ुदा देगा 

मेरा क़ातिल ही मेरा मुंसिब है 
क्या मेरे हक़ में फ़ैसला देगा 

ज़िन्दगी को क़रीब से देखो 
इसका चेहरा तुम्हें रुला देगा 

हमसे पूछो दोस्ती का सिला 
दुश्मनों का भी दिल हिला देगा 

इश्क़ का ज़हर पी लिया "फ़ाकिर" 
अब मसीहा भी क्या दवा देगा 

Monday, 4 July 2011

Sudarshan fakir

इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया
वर्ना क्या बात थी किस बात ने रोने न दिया

आप कहते थे के रोने से न बदलेंगे नसीब
उम्र भर आपकी इस बात ने रोने न दिया

रोनेवालों से कह दो उनका भी रोना रोलें
जिनको मजबूरी-ए-हालात ने रोने न दिया

तुझसे मिलकर हमें रोना था बहुत रोना था
तंगी-ए-वक़्त-ए-मुलाक़ात ने रोने न दिया

एक दो रोज़ का सदमा हो तो रो लें "फ़ाकिर"
हम को हर रोज़ के सदमात ने रोने न दिया

Sudarshan fakir

कुछ तो दुनिया कि इनायात ने दिल तोड़ दिया
और कुछ तल्ख़ी-ए-हालात ने दिल तोड़ दिया

हम तो समझे थे के बरसात में बरसेगी शराब
आयी बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया

दिल तो रोता रहे, ओर आँख से आँसू न बहे
इश्क़ की ऐसी रवायात ने दिल तोड़ दिया

वो मेरे हैं, मुझे मिल जायेंगे, आ जायेंगे
ऐसे बेकार ख़यालात ने दिल तोड़ दिया

आप को प्यार है मुझ से के नहीं है मुझ से 
जाने क्यों ऐसे सवालात ने दिल तोड़ दिया