Thursday, 15 March 2012

सीमाब अकबराबादी

ग़म मुझे हसरत मुझे वहशत मुझे सौदा मुझे|
एक दिल देके ख़ुदा ने दे दिया क्या क्या मुझे|
 
है हुसूल-ए-आरज़ू[1] का राज़[2] तर्क-ए-आरज़ू[3],
मैंने दुनिया छोड़ दी तो मिल गई दुनिया मुझे|


कह के सोया हूँ ये अपने इज़्तराब-ए-शौक़ से,
जब वो आयेँ क़ब्र पर फ़ौरन जगा देना मुझे|
 
सुबह तक क्या क्या तेरी उम्मीद ने ताने दिये,
आ गया था शाम-ए-ग़म एक नींद का झोंका मुझे|
 
ये नमाज़-ए-इश्क़ है कैसा अदब किसका अदब,
अपने पाय-ए-नमाज़ पर करने दो सज़दा मुझे|
 
देखते ही देखते दुनिया से मैं उठ जाऊँगा,
देखती की देखती रह जाएगी दुनिया मुझे|
 

शब्दार्थ:

↑ इच्छा-पूर्ति
↑ रहस्य
↑ इच्छा का त्याग

सीमाब अकबराबादी

शब-ए-ग़म ऐ मेरे अल्लाह बसर भी होगी|
रात ही रात रहेगी के सहर भी होगी|
[सहर=शाम]

मैं ये सुनता हूँ के वो दुनिया की ख़बर रखते हैं,
जो ये सच है तो उंहें मेरी ख़बर भी होगी|
 
चैन मिलने से है उन के न जुदा रहने से,
आख़िर ऐ इश्क़ किसी तरह बसर भी होगी|

 सीमाब अकबराबादी

नसीम-ए-सुबह गुलशन में गुलों से खेलती होगी| 
किसी की आख़िरी हिचकी किसी की दिल्लगी होगी| 
[नसीम=हवा] 

तुम्हें दानिस्ता महफ़िल में जो देखा हो तो मुजरिम हूँ, 
नज़र आख़िर नज़र है बे-इरादा उठ गई होगी|
[दानिस्ता=जान बूझ कर/क्नोविन्ग्ल्य] 

मज़ा आ जायेगा महशर में कुछ सुनने सुनाने का, 
ज़ुबाँ होगी हमारी और कहानी आप की होगी| 
[महशर=फैसले का दिन] 

सर-ए-महफ़िल बता दूँगा सर-ए-महशर दिख दूँगा, 
हमारे साथ तुम होगे ये दुनिया देखती होगी|
 
यही आलम रहा पर्दानशीनों का तो ज़ाहिर है, 
ख़ुदाई आप से होगी न हम से बंदगी होगी| 
[ज़ाहिर=प्रकट] 

त'अज्जुब क्या लगी जो आग ऐ 'सीमाब' सीने में,
हज़ारों दिल मे अँगारे भरे थे लग गई होगी|