mere har amal ko nazar mein rakh meri chaahto ko sila na de
main chirag e aakhiri shab sahi mujhe berukhi ki hawa na de
mujhe dushmano se gila nahi sila doston se mila nahi
mujhe jitna jeena tha jee chuka mujhe zindagi ki dua na de
ye talaash ka bewafa safar mujhe tumse door tha
main laut ke aaonga yaad rakh tera shehar mujhko bhula na de
main bhala nahi to bura sahi tujhe mujse koi gila sahi
tera baat baat per roothna nayi raah mujhko dikha na de
Wednesday, 30 May 2012
Friday, 11 May 2012
दाग़ देहलवी
तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था
न था रक़ीब[1]तो आख़िर वो नाम किस का था
वो क़त्ल कर के हर किसी से पूछते हैं
ये काम किस ने किया है ये काम किस का था
वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे
तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था
रहा न दिल में वो बेदर्द और दर्द रहा
मुक़ीम[2] कौन हुआ है मुक़ाम किस का था
न पूछ-ताछ थी किसी की वहाँ न आवभगत
तुम्हारी बज़्म में कल एहतमाम[3] किस का था
हमारे ख़त के तो पुर्जे किए पढ़ा भी नहीं
सुना जो तुम ने बा-दिल वो पयाम किस का था
इन्हीं सिफ़ात[4] से होता है आदमी मशहूर
जो लुत्फ़ आप ही करते तो नाम किस का था
तमाम बज़्म जिसे सुन के रह गई मुश्ताक़[5]
कहो वो तज़्किरा-ए-नातमाम [6]किसका था
गुज़र गया वो ज़माना कहें तो किस से कहें
ख़याल मेरे दिल को सुबह-ओ-शाम किस का था
अगर्चे देखने वाले तेरे हज़ारों थे
तबाह हाल बहुत ज़ेरे-बाम[7] किसका था
हर इक से कहते हैं क्या 'दाग़' बेवफ़ा निकला
ये पूछे इन से कोई वो ग़ुलाम किस का था
शब्दार्थ:
↑ दुश्मन
↑ निवासी
↑ प्रबन्ध
↑ गुणों
↑ उत्सुक
↑ अधूरा ज़िक्र
↑ साये के नीचे
न था रक़ीब[1]तो आख़िर वो नाम किस का था
वो क़त्ल कर के हर किसी से पूछते हैं
ये काम किस ने किया है ये काम किस का था
वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे
तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था
रहा न दिल में वो बेदर्द और दर्द रहा
मुक़ीम[2] कौन हुआ है मुक़ाम किस का था
न पूछ-ताछ थी किसी की वहाँ न आवभगत
तुम्हारी बज़्म में कल एहतमाम[3] किस का था
हमारे ख़त के तो पुर्जे किए पढ़ा भी नहीं
सुना जो तुम ने बा-दिल वो पयाम किस का था
इन्हीं सिफ़ात[4] से होता है आदमी मशहूर
जो लुत्फ़ आप ही करते तो नाम किस का था
तमाम बज़्म जिसे सुन के रह गई मुश्ताक़[5]
कहो वो तज़्किरा-ए-नातमाम [6]किसका था
गुज़र गया वो ज़माना कहें तो किस से कहें
ख़याल मेरे दिल को सुबह-ओ-शाम किस का था
अगर्चे देखने वाले तेरे हज़ारों थे
तबाह हाल बहुत ज़ेरे-बाम[7] किसका था
हर इक से कहते हैं क्या 'दाग़' बेवफ़ा निकला
ये पूछे इन से कोई वो ग़ुलाम किस का था
शब्दार्थ:
↑ दुश्मन
↑ निवासी
↑ प्रबन्ध
↑ गुणों
↑ उत्सुक
↑ अधूरा ज़िक्र
↑ साये के नीचे
दाग़ देहलवी
अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता
कभी जान सदक़े होती कभी दिल निसार होता
न मज़ा है दुश्मनी में न है लुत्फ़ दोस्ती में
कोई ग़ैर ग़ैर होता कोई यार यार होता
ये मज़ा था दिल्लगी का कि बराबर आग लगती
न तुम्हें क़रार होता न हमें क़रार होता
तेरे वादे पर सितमगर अभी और सब्र करते
अगर अपनी जिन्दगी का हमें ऐतबार होता
कभी जान सदक़े होती कभी दिल निसार होता
न मज़ा है दुश्मनी में न है लुत्फ़ दोस्ती में
कोई ग़ैर ग़ैर होता कोई यार यार होता
ये मज़ा था दिल्लगी का कि बराबर आग लगती
न तुम्हें क़रार होता न हमें क़रार होता
तेरे वादे पर सितमगर अभी और सब्र करते
अगर अपनी जिन्दगी का हमें ऐतबार होता
दाग़ देहलवी
ग़ज़ब किया तेरे वादे पे ऐतबार किया
तमाम रात क़यामत का इन्तज़ार किया
हंसा हंसा के शब-ए-वस्ल अश्क-बार किया
तसल्लिया मुझे दे-दे के बेकरार किया
हम ऐसे मह्व-ए-नज़ारा न थे जो होश आता
मगर तुम्हारे तग़ाफ़ुल ने होशियार किया
फ़साना-ए-शब-ए-ग़म उन को एक कहानी थी
कुछ ऐतबार किया और कुछ ना-ऐतबार किया
ये किसने जल्वा हमारे सर-ए-मज़ार किया
कि दिल से शोर उठा हाए! बेक़रार किया
तड़प फिर ऐ दिल-ए-नादां कि ग़ैर कहते हैं
आख़िर कुछ न बनी सब्र इख्तियार किया
भुला भुला के जताया है उनको राज़-ए-निहां
छिपा छिपा के मोहब्बत के आशकार किया
तुम्हें तो वादा-ए-दीदार हम से करना था
ये क्या किया कि जहाँ के उम्मीदवार किया
ये दिल को ताब कहाँ है कि हो मालन्देश
उन्हों ने वादा किया हम ने ऐतबार किया
न पूछ दिल की हक़ीकत मगर ये कहते हैं
वो बेक़रार रहे जिसने बेक़रार किया
कुछ आगे दावर-ए-महशर से है उम्मीद मुझे
कुछ आप ने मेरे कहने का ऐतबार किया
तमाम रात क़यामत का इन्तज़ार किया
हंसा हंसा के शब-ए-वस्ल अश्क-बार किया
तसल्लिया मुझे दे-दे के बेकरार किया
हम ऐसे मह्व-ए-नज़ारा न थे जो होश आता
मगर तुम्हारे तग़ाफ़ुल ने होशियार किया
फ़साना-ए-शब-ए-ग़म उन को एक कहानी थी
कुछ ऐतबार किया और कुछ ना-ऐतबार किया
ये किसने जल्वा हमारे सर-ए-मज़ार किया
कि दिल से शोर उठा हाए! बेक़रार किया
तड़प फिर ऐ दिल-ए-नादां कि ग़ैर कहते हैं
आख़िर कुछ न बनी सब्र इख्तियार किया
भुला भुला के जताया है उनको राज़-ए-निहां
छिपा छिपा के मोहब्बत के आशकार किया
तुम्हें तो वादा-ए-दीदार हम से करना था
ये क्या किया कि जहाँ के उम्मीदवार किया
ये दिल को ताब कहाँ है कि हो मालन्देश
उन्हों ने वादा किया हम ने ऐतबार किया
न पूछ दिल की हक़ीकत मगर ये कहते हैं
वो बेक़रार रहे जिसने बेक़रार किया
कुछ आगे दावर-ए-महशर से है उम्मीद मुझे
कुछ आप ने मेरे कहने का ऐतबार किया
फ़िराक़ गोरखपुरी
रात भी, नींद भी, कहानी भी
हाय, क्या चीज़ है जवानी भी
एक पैगाम-ए-ज़िन्दगानी भी
आशिकी मर्गे-नागहानी भी
इस अदा का तेरी जवाब नहीं
मेहरबानी भी, सरगरानी भी
दिल को अपने भी गम थे दुनिया में
कुछ बलायें थी आसमानी भी
मंसबे-दिल खुशी लुटाता है
गमे-पिन्हान भी, पासबानी भी
दिल को शोलों से करती है सैराब
ज़िन्दगी आग भी है, पानी भी
शादकामों को ये नहीं तौफ़ीक़
दिले-गमगीं की शादमानी भी
लाख हुस्न-ए-यकीं से बढकर है
इन निगाहों की बदगुमानी भी
तंगना-ए-दिले-मलाल में है
देहर-ए-हस्ती की बेकरानी भी
इश्के-नाकाम की है परछाई
शादमानी भी, कामरानी भी
देख दिल के निगारखाने में
ज़ख्म-ए-पिन्हान की है निशानी भी
खल्क क्या क्या मुझे नहीं कहती
कुछ सुनूं मैं तेरी जुबानी भी
आये तारीक-ए-इश्क में सौ बार
मौत के दौर दरमियानी भी
अपनी मासूमियों के परदे में
हो गई वो नजर सयानी भी
दिन को सूरजमुखी है वो नौगुल
रात को वो है रातरानी भी
दिले-बदनाम तेरे बारे में
लोग कहते हैं इक कहानी भी
नज़्म करते कोई नयी दुनिया
कि ये दुनिया हुई पुरानी भी
दिल को आदाबे-बंदगी भी ना आये
कर गये लोग हुक्मरानी भी
जौरे-कम कम का शुक्रिया बस है
आप की इतनी मेहरबानी भी
दिल में एक हूक सी उठे ऐ दोस्त
याद आये तेरी जवानी भी
सर से पा तक सुपुर्दगी की अदा
एक अन्दाजे-तुर्कमानी भी
पास रहना किसी का रात की रात
मेहमानी भी, मेजबानी भी
जो ना अक्स-ए-जबीं-ए-नाज की है
दिल में इक नूर-ए-कहकशानी भी
ज़िन्दगी ऐन दीद-ए-यार ’फ़िराक़’
ज़िन्दगी हिज़्र की कहानी भी
मर्गे-नागहानी= अचानक मौत
सरगरानी=गुस्सा मन्सब=मन्सूबा
सैराब=भिगोना शादकाम=भाग्यवान लोग
तौफ़ीक=काबिलियत शादमानी=खुशी
तन्गामा-ए-दिले-मलाल=दुखी दिल के थोडे से हिस्से में
देहर-ए-हस्ती=ज़िन्दगी का समन्दर बेकरानी=असन्ख्य
कामरानी=सफ़लता निगारखाना=जहां बहुत लडकियां हों
पिन्हान=छुपा हुआ खल्क=दुनिया तारीके-इश्क=मोहब्बत का इतिहास
दौर=वक्त, समय दरमियानी=बीच में नौगुल=नया फ़ूल
नज़्म=नया बनाना जौर=कहर पा=पांव सुपुर्दगी=समर्पण
तुर्कमानी=विद्रोही अक्स-ए-जबीं-ए-नाज़=किसी प्यारे का चेहरा
नूर=प्रकाश कहकशां=आकाश गंगा ऐन= असलियत में
हाय, क्या चीज़ है जवानी भी
एक पैगाम-ए-ज़िन्दगानी भी
आशिकी मर्गे-नागहानी भी
इस अदा का तेरी जवाब नहीं
मेहरबानी भी, सरगरानी भी
दिल को अपने भी गम थे दुनिया में
कुछ बलायें थी आसमानी भी
मंसबे-दिल खुशी लुटाता है
गमे-पिन्हान भी, पासबानी भी
दिल को शोलों से करती है सैराब
ज़िन्दगी आग भी है, पानी भी
शादकामों को ये नहीं तौफ़ीक़
दिले-गमगीं की शादमानी भी
लाख हुस्न-ए-यकीं से बढकर है
इन निगाहों की बदगुमानी भी
तंगना-ए-दिले-मलाल में है
देहर-ए-हस्ती की बेकरानी भी
इश्के-नाकाम की है परछाई
शादमानी भी, कामरानी भी
देख दिल के निगारखाने में
ज़ख्म-ए-पिन्हान की है निशानी भी
खल्क क्या क्या मुझे नहीं कहती
कुछ सुनूं मैं तेरी जुबानी भी
आये तारीक-ए-इश्क में सौ बार
मौत के दौर दरमियानी भी
अपनी मासूमियों के परदे में
हो गई वो नजर सयानी भी
दिन को सूरजमुखी है वो नौगुल
रात को वो है रातरानी भी
दिले-बदनाम तेरे बारे में
लोग कहते हैं इक कहानी भी
नज़्म करते कोई नयी दुनिया
कि ये दुनिया हुई पुरानी भी
दिल को आदाबे-बंदगी भी ना आये
कर गये लोग हुक्मरानी भी
जौरे-कम कम का शुक्रिया बस है
आप की इतनी मेहरबानी भी
दिल में एक हूक सी उठे ऐ दोस्त
याद आये तेरी जवानी भी
सर से पा तक सुपुर्दगी की अदा
एक अन्दाजे-तुर्कमानी भी
पास रहना किसी का रात की रात
मेहमानी भी, मेजबानी भी
जो ना अक्स-ए-जबीं-ए-नाज की है
दिल में इक नूर-ए-कहकशानी भी
ज़िन्दगी ऐन दीद-ए-यार ’फ़िराक़’
ज़िन्दगी हिज़्र की कहानी भी
मर्गे-नागहानी= अचानक मौत
सरगरानी=गुस्सा मन्सब=मन्सूबा
सैराब=भिगोना शादकाम=भाग्यवान लोग
तौफ़ीक=काबिलियत शादमानी=खुशी
तन्गामा-ए-दिले-मलाल=दुखी दिल के थोडे से हिस्से में
देहर-ए-हस्ती=ज़िन्दगी का समन्दर बेकरानी=असन्ख्य
कामरानी=सफ़लता निगारखाना=जहां बहुत लडकियां हों
पिन्हान=छुपा हुआ खल्क=दुनिया तारीके-इश्क=मोहब्बत का इतिहास
दौर=वक्त, समय दरमियानी=बीच में नौगुल=नया फ़ूल
नज़्म=नया बनाना जौर=कहर पा=पांव सुपुर्दगी=समर्पण
तुर्कमानी=विद्रोही अक्स-ए-जबीं-ए-नाज़=किसी प्यारे का चेहरा
नूर=प्रकाश कहकशां=आकाश गंगा ऐन= असलियत में
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