हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डाला चोरी तो नहीं की है
ना-तजुर्बाकारी से वाइज़[1] की ये बातें हैं
इस रंग को क्या जाने पूछो तो कभी पी है
उस मय से नहीं मतलब दिल जिस से है बेगाना
मक़सूद[2] है उस मय से दिल ही में जो खिंचती है
वां[3] दिल में कि दो सदमेयां[4] जी में कि सब सह लो
उन का भी अजब दिल है मेरा भी अजब जी है
हर ज़र्रा चमकता है अनवर-ए-इलाही[5] से
हर साँस ये कहती है कि हम हैं तो ख़ुदा भी है
सूरज में लगे धब्बा फ़ितरत[6] के करिश्मे हैं
बुत हम को कहें काफ़िर अल्लाह की मर्ज़ी है
शब्दार्थ:
↑ धर्मोपदेशक
↑ मनोरथ
↑ वहाँ
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