Thursday, 20 October 2011

Waseem barelvi

आते-आते मेरा नाम सा रह गया 
उस के होंठों पे कुछ काँपता रह गया

वो मेरे सामने ही गया और मैं 
रास्ते की तरह देखता रह गया

झूठ वाले कहीं से कहीं बढ़ गये 
और मैं था कि सच बोलता रह गया

आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे 
ये दिया कैसे जलता रह गया

'ana' qashmi

उसको नम्बर देके मेरी और उलझन बढ़ गई
फोन की घंटी बजी और दिल की धड़कन बढ़ गई

इस तरफ़ भी शायरी में कुछ वज़न-सा आ गया
उस तरफ़ भी चूड़ियों की और खन-खन बढ़ गई

हम ग़रीबों के घरों की वुसअतें मत पूछिए
गिर गई दीवार जितनी उतनी आँगन बढ़ गई

मशवरा औरों से लेना इश्क़ में मंहगा पड़ा
चाहतें क्या ख़ाक बढ़तीं और अनबन बढ़ गई

आप तो नाज़ुक इशारे करके बस चलते बने
दिल के शोलों पर इधर तो और छन-छन बढ़ गई

Nasir kazmi

फिर सावन रुत की पवन चली तुम याद आये
फिर पत्तों की पाज़ेब बजी तुम याद आये

फिर कुँजें बोलीं घास के हरे समन्दर में
रुत आई पीले फूलों की तुम याद आये

फिर कागा बोला घर के सूने आँगन में
फिर अम्रत रस की बूँद पड़ी तुम याद आये

पहले तो मैं चीख़ के रोया फिर हँसने लगा
बादल गरजा बिजली चमकी तुम याद आये

दिन भर तो मैं दुनिया के धंधों में खोया रहा
जब दीवारों से धूप ढली तुम याद आये

Monday, 10 October 2011

Sudarshan fakir

ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो 
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी 
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वो काग़ज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी 

मुहल्ले की सबसे निशानी पुरानी 
वो बुढ़िया जिसे बच्चे कहते थे नानी 
वो नानी की बातों में परियों का डेरा 
वो चहरे की झुरिर्यों में सदियों का फेरा 
भुलाये नहीं भूल सकता है कोई 
वो छोटी सी रातें वो लम्बी कहानी 

कड़ी धूप में अपने घर से निकलना 
वो चिड़िया वो बुलबुल वो तितली पकड़ना
वो गुड़िया की शादी में लड़ना झगड़ना 
वो झूलों से गिरना वो गिर के सम्भलना 
वो पीतल के छल्लों के प्यारे से तोहफ़े 
वो टूटी हुई चूड़ियों की निशानी 

कभी रेत के ऊँचे टीलों पे जाना 
घरोंदे बनाना बना के मिटाना 
वो मासूम चाहत की तस्वीर अपनी
वो ख़्वाबों खिलौनों की जागीर अपनी 
न दुनिया का ग़म था न रिश्तों के बंधन 
बड़ी खूबसूरत थी वो ज़िंदगानी 

दुष्यंत कुमार

परिन्दे अब भी पर तोले हुए हैं
हवा में सनसनी घोले हुए हैं 

तुम्हीं कमज़ोर पड़ते जा रहे हो
तुम्हारे ख़्वाब तो शोले हुए हैं 

ग़ज़ब है सच को सच कहते नहीं वो
क़ुरान—ओ—उपनिषद् खोले हुए हैं 

मज़ारों से दुआएँ माँगते हो
अक़ीदे किस क़दर पोले हुए हैं 

हमारे हाथ तो काटे गए थे
हमारे पाँव भी छोले हुए हैं 

कभी किश्ती, कभी बतख़, कभी जल
सियासत के कई चोले हुए हैं 

हमारा क़द सिमट कर मिट गया है
हमारे पैरहन झोले हुए हैं 

चढ़ाता फिर रहा हूँ जो चढ़ावे
तुम्हारे नाम पर बोले हुए हैं

दुष्यंत कुमार

ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा 
मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा 

यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा 

ग़ज़ब ये है कि अपनी मौत की आहट नहीं सुनते
वो सब के सब परीशाँ हैं वहाँ पर क्या हुआ होगा 

तुम्हारे शहर में ये शोर सुन-सुन कर तो लगता है
कि इंसानों के जंगल में कोई हाँका हुआ होगा 

कई फ़ाक़े  बिता कर मर गया जो उसके बारे में
वो सब कहते हैं अब, ऐसा नहीं,ऐसा हुआ होगा 

यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं
ख़ुदा जाने वहाँ पर किस तरह जलसा हुआ होगा 

चलो, अब यादगारों की अँधेरी कोठरी खोलें
कम-अज-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा

दुष्यंत कुमार

मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ 

एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ 

तू किसी रेल-सी गुज़रती है
मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ 

हर तरफ़ ऐतराज़ होता है
मैं अगर रौशनी में आता हूँ 

एक बाज़ू उखड़ गया जबसे
और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ 

मैं तुझे भूलने की कोशिश में
आज कितने क़रीब पाता हूँ 

कौन ये फ़ासला निभाएगा
मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ

दुष्यंत कुमार

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

Parveen sakir

चेहरा मेरा था निगाहें उस की
ख़ामुशी में भी वो बातें उस की

मेरे चेहरे पे ग़ज़ल लिखती गईं
शेर कहती हुई आँखें उस की

शोख़ लम्हों का पता देने लगीं
तेज़ होती हुई साँसें उस की 

ऐसे मौसम भी गुज़ारे हम ने
सुबहें जब अपनी थीं शामें उस की

ध्यान में उस के ये आलम था कभी
आँख महताब की यादें उस की

फ़ैसला मौज-ए-हवा ने लिक्खा
आँधियाँ मेरी बहारें उस की

नीन्द इस सोच से टूटी अक्सर 
किस तरह कटती हैं रातें उस की

दूर रह कर भी सदा रहती है
मुझ को थामे हुए बाहें उस की

Qateel sifai

अपने होंठों पर सजाना चाहता हूँ 
आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ 

कोई आँसू तेरे दामन पर गिराकर 
बूँद को मोती बनाना चाहता हूँ 

थक गया मैं करते-करते याद तुझको 
अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ

छा रहा है सारी बस्ती में अँधेरा 
रोशनी हो, घर जलाना चाहता हूँ 

आख़री हिचकी तेरे ज़ानों पे आये 
मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ

Qateel sifai

तुम पूछो और मैं न बताऊँ ऐसे तो हालात नहीं 
एक ज़रा सा दिल टूटा है और तो कोई बात नहीं 

किस को ख़बर थी साँवले बादल बिन बरसे उड़ जाते हैं 
सावन आया लेकिन अपनी क़िस्मत में बरसात नहीं 

माना जीवन में औरत एक बार मोहब्बत करती है 
लेकिन मुझको ये तो बता दे क्या तू औरत ज़ात नहीं 

ख़त्म हुआ मेरा अफ़साना अब ये आँसू पोंछ भी लो 
जिस में कोई तारा चमके आज की रात वो रात नहीं 

मेरे ग़मगीं होने पर अहबाब हैं यों हैरान "क़तील" 
जैसे मैं पत्थर हूँ मेरे सीने में जज़्बात नहीं 

क़तील शिफ़ाई

जब भी चाहें एक नई सूरत बना लेते हैं लोग
एक चेहरे पर कई चेहरे सजा लेते हैं लोग

मिल भी लेते हैं गले से अपने मतलब के लिए
आ पड़े मुश्किल तो नज़रें भी चुरा लेते हैं लोग

है बजा उनकी शिकायत लेकिन इसका क्या इलाज
बिजलियाँ खुद अपने गुलशन पर गिरा लेते हैं लोग

हो खुशी भी उनको हासिल ये ज़रूरी तो नहीं
गम छुपाने के लिए भी मुस्कुरा लेते हैं लोग

ये भी देखा है कि जब आ जाये गैरत का मुकाम
अपनी सूली अपने काँधे पर उठा लेते हैं लोग

क़तील शिफ़ाई

तुम्हारी अंजुमन से उठ के दीवाने कहाँ जाते
जो वाबस्ता हुए तुमसे वो अफ़साने कहाँ जाते

निकल कर दैर-ओ-क़ाबा से अगर मिलता न मैख़ाना
तो ठुकराए हुए इन्साँ ख़ुदा जाने कहाँ जाते

तुम्हारी बेरुख़ी ने लाज रख ली बादाख़ाने[1] की
तुम आँखों से पिला देते तो पैमाने कहाँ जाते

चलो अच्छा हुआ काम आ गयी दीवानगी अपनी
वगरना हम ज़माने को ये समझाने कहाँ जाते

‘क़तील’ अपना मुक़द्दर ग़म से बेग़ाना[2] अगर होता
तो फिर अपने-पराए हमसे पहचाने कहाँ जाते
शब्दार्थ:

↑ शराबख़ाने
↑ अपिरिचित अथवा रहित

क़तील शिफ़ाई

दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह
फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह

मैनें तुझसे चाँद सितारे कब माँगे
रौशन दिल बेदार नज़र दे या अल्लाह

सूरज सी इक चीज़ तो हम सब देख चुके
सचमुच की अब कोई सहर दे या अल्लाह

या धरती के ज़ख़्मों पर मरहम रख दे
या मेरा दिल पत्थर कर दे या अल्लाह

क़तील शिफ़ाई

वो दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करे 
मैं तुझको भूल के ज़िंदा रहूँ ख़ुदा न करे 

रहेगा साथ तेरा प्यार ज़िन्दगी बनकर 
ये और बात मेरी ज़िन्दगी वफ़ा न करे 

ये ठीक है नहीं मरता कोई जुदाई में 
ख़ुदा किसी से किसी को मगर जुदा न करे 

सुना है उसको मोहब्बत दुआयें देती है 
जो दिल पे चोट तो खाये मगर गिला न करे 

ज़माना देख चुका है परख चुका है उसे 
"क़तील" जान से जाये पर इल्तजा न करे 

क़तील शिफ़ाई

परेशाँ रात सारी है सितारों तुम तो सो जाओ
सुकूत-ए-मर्ग तारी है सितारों तुम तो सो जाओ

हँसो और हँसते-हँसते डूबते जाओ ख़लाओं में
हमें ये रात भारी है सितारों तुम तो सो जाओ

तुम्हें क्या आज भी कोई अगर मिलने नहीं आया
ये बाज़ी हमने हारी है सितारों तुम तो सो जाओ

कहे जाते हो रो-रो के हमारा हाल दुनिया से
ये कैसी राज़दारी है सितारों तुम तो सो जा

हमें तो आज की शब पौ फटे तक जागना होगा
यही क़िस्मत हमारी है सितारों तुम तो सो जाओ

हमें भी नींद आ जायेगी हम भी सो ही जायेंगे
अभी कुछ बेक़रारी है सितारों तुम तो सो जाओ

Sunday, 9 October 2011

Rahat indori

रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता है
चाँद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है

मैं समंदर हूँ कुल्हाड़ी से नही काट सकता
कोई फव्वारा नही हूँ जो उबल पड़ता है

कल वहाँ चाँद उगा करते थे हर आहट पर
अपने रास्ते में जो वीरान महल पड़ता है

ना त-आरूफ़ ना त-अल्लुक है मगर दिल अक्सर
नाम सुनता है तुम्हारा तो उछल पड़ता  है

उसकी याद आई है साँसों ज़रा धीरे चलो
धड़कनो से भी इबादत में खलल पड़ता है!

Rahat Indori

Baseer badr

कभी यूँ भी आ मेरी आँख में, कि मेरी नज़र को ख़बर न हो
मुझे एक रात नवाज़ दे, मगर उसके बाद सहर न हो

वो बड़ा रहीमो-करीम है, मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो मेरी दुआ में असर न हो

मेरे बाज़ुओं में थकी-थकी, अभी महवे- ख़्वाब है चाँदनी
न उठे सितारों की पालकी, अभी आहटों का गुज़र न हो

ये ग़ज़ल है जैसे हिरन की आँखों में पिछली रात की चाँदनी
न बुझे ख़राबे की रौशनी, कभी बे-चिराग़ ये घर न हो

कभी दिन की धूप में झूम कर, कभी शब के फूल को चूम कर
यूँ ही साथ-साथ चले सदा, कभी ख़त्म अपना सफ़र न हो

मेरे पास मेरे हबीब आ, ज़रा और दिल के करीब आ
तुझे धड़कनों में बसा लूँ मैं, कि बिछड़ने का कभी डर न हो

Baseer badr

कभी यूँ भी आ मेरी आँख में, कि मेरी नज़र को ख़बर न हो
मुझे एक रात नवाज़ दे, मगर उसके बाद सहर न हो

वो बड़ा रहीमो-करीम है, मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो मेरी दुआ में असर न हो

मेरे बाज़ुओं में थकी-थकी, अभी महवे- ख़्वाब है चाँदनी
न उठे सितारों की पालकी, अभी आहटों का गुज़र न हो

ये ग़ज़ल है जैसे हिरन की आँखों में पिछली रात की चाँदनी
न बुझे ख़राबे की रौशनी, कभी बे-चिराग़ ये घर न हो

कभी दिन की धूप में झूम कर, कभी शब के फूल को चूम कर
यूँ ही साथ-साथ चले सदा, कभी ख़त्म अपना सफ़र न हो

मेरे पास मेरे हबीब आ, ज़रा और दिल के करीब आ
तुझे धड़कनों में बसा लूँ मैं, कि बिछड़ने का कभी डर न हो

Baseer badr

कहाँ आँसुओं की ये सौगात होगी 
नए लोग होंगे नयी बात होगी 

मैं हर हाल में मुस्कराता रहूँगा 
तुम्हारी मोहब्बत अगर साथ होगी 

चराग़ों को आँखों में महफूज़ रखना
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी 

न तुम होश में हो न हम होश में है 
चलो मयकदे में वहीं बात होगी

जहाँ वादियों में नए फूल आएँ 
हमारी तुम्हारी मुलाक़ात होगी 

सदाओं को अल्फाज़ मिलने न पायें 
न बादल घिरेंगे न बरसात होगी 

मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी 
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी

Baseer badr

रात आँखों में ढली पलकों पे जुगनूँ आए
हम हवाओं की तरह जाके उसे छू आए

बस गई है मेरे अहसास में ये कैसी महक
कोई ख़ुशबू में लगाऊँ तेरी ख़ुशबू आए

उसने छू कर मुझे पत्थर से फिर इंसान किया
मुद्दतों बाद मेरी आँखों में आँसू आए

मेरा आईना भी अब मेरी तरह पागल है
आईना देखने जाऊँ तो नज़र तू आए

किस तकल्लुफ़ से गले मिलने का मौसम आया
कुछ काग़ज़ के फूल लिए काँच के बाजू आए

उन फ़कीरों को ग़ज़ल अपनी सुनाते रहियो
जिनकी आवाज़ में दरगाहों की ख़ुशबू आए

Baseer badr

हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए 
चराग़ों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाए 

मैं ख़ुद भी एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूँ 
कोई मासूम क्यों मेरे लिए बदनाम हो जाए 

अजब हालात थे यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर 
मोहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए 

समन्दर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको 
हवाएँ तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए

मुझे मालूम है उसका ठिकाना फिर कहाँ होगा 
परिंदा आसमाँ छूने में जब नाकाम हो जाए 

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो 
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए

Baseer badr

कहीं चांद राहों में खो गया कहीं चांदनी भी भटक गई
मैं चराग़ वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गई

मेरी दास्ताँ का उरूज था तेरी नर्म पलकों की छाँव में
मेरे साथ था तुझे जागना तेरी आँख कैसे झपक गई

कभी हम मिले तो भी क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले
न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिझक गई

मुझे पदने वाला पढ़े भी क्या मुझे लिखने वाला लिखे भी क्या 
जहाँ नाम मेरा लिखा गया वहां रोशनाई उलट गई
  
तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी क़ामयाब न हो सकीं
तेरी याद शाख़-ए-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई

Baseer badr

अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जायेगा
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझे चाहेगा

तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा
मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लायेगा

ना जाने कब तेरे दिल पर नई सी दस्तक हो
मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आयेगा

मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ
अगर वो आया तो किस रास्ते से आयेगा

तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है
तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सतायेगा

Rahat indori

 
Wafa ko aazmana chahiye tha humara dil dukhana chahiye tha
Aana na aana meri marzi hai 
tumko to bulana chahiye tha

Humari khwaahish ek ghar ki thi 
use sara zamaana chahiye tha
Meri aankhein kaha nam hui thi samundar ko bahana chahiye tha

Jaha par panhuchna main chahta hoon 
waha pe panhuch jana chahiye tha
Humara zakhm purana bahut hai charagar bhi purana chahiye tha

Mujhse pahle wo kisi aur ki thi 
magar kuch shayrana chahiye tha
Chalo mana ye choti baat hai par tumhe sab kuch batana chahiye tha

Tera bhi shaher me koi nahi tha mujhe bhi ek thikana chahiye tha
Ke kis ko kis tarah se bhoolte hain tumhe mujhko sikhana chahiye tha

Aisa lagta hai lahoo mein humko kalam ko bhi dubana chahiye tha
Ab mere saath rah ke tanz na kar tujhe jana tha jana chahiye tha

Kya bus maine hi ki hai bewafaai 
jo bhi sach hai batana chahiye tha
Meri barbadi pe wo chahta hai 
mujhe bhi muskurana chahiye tha

Bas ek tu hi mere saath mein hai tujhe bhi rooth jana chahiye tha
Humare paas jo ye fan hai miya hume is se kamana chahiye tha

Ab ye taaj kis kaam ka hai 
hume sar ko bachana chahiye tha
Usi ko yaad rakha umar bhar 
ke jisko bhool jana chahiye tha

Mujhse baat bhi karni thi usko 
gale se bhi lagana chahiye tha
usne pyaar se bulaya tha 
hume mar ke bhi aana chahiye tha

Tumhe 'rahat' use pane ke khatir kabhi khud ko gawana chahiye tha!!