Sunday, 9 October 2011

Baseer badr

हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए 
चराग़ों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाए 

मैं ख़ुद भी एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूँ 
कोई मासूम क्यों मेरे लिए बदनाम हो जाए 

अजब हालात थे यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर 
मोहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए 

समन्दर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको 
हवाएँ तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए

मुझे मालूम है उसका ठिकाना फिर कहाँ होगा 
परिंदा आसमाँ छूने में जब नाकाम हो जाए 

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो 
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए

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