Monday, 10 October 2011

Qateel sifai

तुम पूछो और मैं न बताऊँ ऐसे तो हालात नहीं 
एक ज़रा सा दिल टूटा है और तो कोई बात नहीं 

किस को ख़बर थी साँवले बादल बिन बरसे उड़ जाते हैं 
सावन आया लेकिन अपनी क़िस्मत में बरसात नहीं 

माना जीवन में औरत एक बार मोहब्बत करती है 
लेकिन मुझको ये तो बता दे क्या तू औरत ज़ात नहीं 

ख़त्म हुआ मेरा अफ़साना अब ये आँसू पोंछ भी लो 
जिस में कोई तारा चमके आज की रात वो रात नहीं 

मेरे ग़मगीं होने पर अहबाब हैं यों हैरान "क़तील" 
जैसे मैं पत्थर हूँ मेरे सीने में जज़्बात नहीं 

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